ग़ज़ल - जब नाम तेरा लिखने को
ग़ज़ल
जब नाम तेरा लिखने को कलम हो बेचैन,
कोई ग़ज़ल एसी लिखकर गुनगुना लेता हूं..
बैठकर यूं तन्हा कभी उस नदिया पर,
मन अपना में अक्सर बहला लेता हूं..
हैरां है लोग मेरी इबादत देखकर,
तेरी ओर जाती हर सड़क पे सर झुका देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
यह दुनिया मेरी अपनी नहीं,एक तू ही है अपना..
तेरी वफा के सदके में ऐसा सिला देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
तू मुझ में से अक्सर हो करके गुजरती है,
तुझको समझ कर मैं हवा नगमा सुना देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
©️
- S.S.S
जब नाम तेरा लिखने को कलम हो बेचैन,
कोई ग़ज़ल एसी लिखकर गुनगुना लेता हूं..
बैठकर यूं तन्हा कभी उस नदिया पर,
मन अपना में अक्सर बहला लेता हूं..
हैरां है लोग मेरी इबादत देखकर,
तेरी ओर जाती हर सड़क पे सर झुका देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
यह दुनिया मेरी अपनी नहीं,एक तू ही है अपना..
तेरी वफा के सदके में ऐसा सिला देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
तू मुझ में से अक्सर हो करके गुजरती है,
तुझको समझ कर मैं हवा नगमा सुना देता हूं..
जब नाम तेरा लिखने को..
©️
- S.S.S
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